Types of Bearings

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Types of Bearings

Types of Bearings


बियरिंग के प्रकार 


                                 किसी भी प्रकार की मशीन के स्पिंडल (Spindle), शाफ्ट (Shaft), पुल्ली (Pully), गियर (Gear) और कैम (Cam) को सहारा देने या इन पार्ट्स को घुमाने या इन पार्ट्स सही स्थिति में रखने के लिए एक विशेष प्रकार के पार्ट का उपयोग किया जाता है, जिसे बियरिंग (Bearing) कहते हैं।

बियरिंग की विशेषताएं :-


1* बियरिंग तथा पार्ट्स के साथ घर्षण (Fiction) कम से कम होना चाहिए।
2* बियरिंग पार्ट्स को सही स्थिति में गाइड करने में सक्षम होना चाहिए‌।
3* बियरिंग वाइब्रेशन (Vibration) रहित तथा स्थिर आधार देने में सक्षम होना चाहिए।
4* बियरिंग मशीन द्वारा पढ़ने वाले भार (Loud) को सहने में सक्षम होना चाहिए।
5* मशीन में लगे पार्ट्स व मशीन की गति के अनुरूप बियरिंग का चुनाव करना चाहिए।
6* बियरिंग मशीन के पार्ट्स को अधिक गति पर तथा इसे स्मूथ (Smooth) रूप से घुमाने वाले होने चाहिए।
7* बियरिंग झटके व कंपन को सहन करने योग्य तथा कम पावर यूज करने वाले होने चाहिए।

                    मशीनों में जरूरत के अनुसार कई प्रकार के बेयरिंग प्रयोग में किए जाते हैं। मुख्य रूप से दो प्रकार के बेयरिंग होते हैं

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1* घर्षण बियरिंग (Friction Bearing)
2* घर्षण रोधी बियरिंग (Anti Friction Bearing)

घर्षण बियरिंग (Friction Bearing)

                        घर्षण बियरिंग (Friction Bearing) इस प्रकार के बेयरिंग कास्ट आयरन (Cast Iron), पीतल (Brass), गनमेटल (Gunmetal), ब्रोंज़ (Bronze) आदि के बनाए जाते हैं इसमें बियरिंग और शाफ्ट प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में रहते हैं। जिसके कारण उनमें घर्षण होता है। इसके लिए लुब्रिकेट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग कम गति व कम चलने वाली मशीनों के लिए किया जाता है।

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घर्षण बियरिंग (Friction Bearing) बियरिंग के प्रकार :-

ठोस बियरिंग (Solid Bearing)

                         यह एक ठोस विशेष आकार में ढाली गई बियरिंग होती है।यह बियरिंग अधिकतर कास्ट आयरन (Cast Iron), गनमेटल (Gunmetal)और ब्रोंज़ (Bronze) के बनाए जाते हैं। इनका प्रयोग कम गति पर चलने वाली मशीनों में किया जाता है। ल्यूब्रिकेट के लिए इनके ऊपर ऑयल हॉल बने होते हैं। कुछ ही समय प्रयोग करने पर घर्षण के द्वारा शाफ्ट का डायमीटर घिस कर कम हो जाता है और बियरिंग का हॉल बड़ा हो जाता है। तो उसे रिपेयर करना काफी कठिन होता है। इसीलिए इसका प्रयोग बहुत कम ही किया जाता है।

बुश बियरिंग (Bush Bearing)

                             बुश बियरिंग की बॉडी (Body) दिखने में ठोस बियरिंग के जैसी ही होती है। ठोस बियरिंग मे साफ्ट चलते चलते उसके बोर को घिस कर बढा देती है। कुछ समय के पश्चात समस्त बियरिंग ही बदलना पड़ता है। इससे बचने के लिए ठोस बियरिंग के बोर को बड़े व्यास का बनाकर उसमें गनमेटल का एक बूश फिट कर दिया जाता है। घिसने पर उसे सुविधा पूर्वक बदला जा सकता है। इस प्रकार के बेयरिंग को बुश बेयरिंग कहते हैं।

प्लमर ब्लॉक / पैडस्टल बियरिंग (Plummer Block / Pedestal Bearing )

                              इसमें दो भागों में विभाजित बुश का प्रयोग किया जाता है। दोनों भागों को आपस में सही दिशा में मिलाएं रखने के लिए ऊपरी भाग (Cap) को दो बोल्ट के द्वारा कस दिया जाता है। केप (Cap) के बीच में एक ल्युब्रिकेट के सुराख होता है। इसको पैडस्टल बियरिंग (Pedestal Bearing) के नाम से जाना जाता है।

पाद (पांव) बियरिंग (Foot Step Bearing)

                        जब किसी सॉफ्ट को खड़ी अवस्था में सहारा देने की आवश्यकता हो  तब फुट स्टेप बियरिंग का प्रयोग किया जाता है। इसमें एक लंबवत कास्ट आयरन की बॉडी में गन मेटल का कॉलर बुश लगाया जाता है। साथ ही नीचे तल में गनमेटल का पेड लगाया जाता है, जो कि शाफ्ट के भार को सहन करता है। इस प्रकार के बियरिंग को फुट स्टेप बेयरिंग कहते हैं।

शैल बियरिंग (Shell Bearing)

                           शैल बियरिंग दो भागों में बने होते हैं। इनकी बाहरी बॉडी गनमेटल कास्ट आयरन की बनाई जाती है,और अंदर व्हाइट मेटल (White Metal)  या बेविट मेटल (Bewit Metal) की लाइनिंग की जाती है यदि बियरिंग का साइज खराब हो जाए तो व्हाइट मेटल को पिघला कर उसकी दोबारा लाइनिंग की जाती है। इसका प्रयोग भारी कामों में किया जाता है‌। इन बियरिंग की बाहरी सतह पर भी कॉलर बनी होती है इनमें लुब्रिकेट के लिए सुराख होता है।

स्पलिट बियरिंग (Split Bearing)

                             यह बियरिंग दो भागों में बना होता है। और इसकी बाहरी सतह पर कॉलर बना होता है। इसे कास्ट आयरन के प्लम्बर ब्लॉक में फिट किया जाता है। यह देखने में पेडेस्टल बियरिंग के समान ही होता है।

थ्रस्ट / काॅलर बियरिंग (Thrust / Collet Bearing)

                              इस बियरिंग के प्रयोग से शाफ्ट के ऊपर दबाव उसकी धूरी के समांतर पड़ता है। शाफ्ट को रोकने के लिए थ्रस्ट या कॉलर बनी होती है। कॉलर दबाव के अनुसार बनी जाती है। कॉलर शाफ्ट व बियरिंग दोनों में भी बनाई जा सकती है।

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स्लीपर या गाइड बियरिंग (Slipper / Guide Bearing)

                               इस प्रकार के बियरिंग का प्रयोग लंबाई में चलने वाले पार्टों के लिए किया जाता है। जो गाइड का काम भी करते हैं। यह बियरिंग कास्ट आयरन के बने होते हैं इन बियरिंग का प्रयोग बहुत ही धीमी गति की मशीनों में किया जाता है।

हाइड्रोस्टेटिक बियरिंग (Hydraulic Beating)

                             बहुत ही एक्यूरेट कार्य करने वाली मशीनों में हाइड्रोस्टेटिक बियरिंग का प्रयोग किया जाता है। इसमें सॉफ्ट के चारों ओर परिधि पर कुछ पैड शू हाउसिंग में लगे होते हैं। इनके बीच में शाफ्ट घूमती है। हाइड्रोस्टेटिक बियरिंग में लुब्रिकेटिंग आॅयल को दबाव में छोड़ा जाता है। जिससे कि सॉफ्ट कुछ समय में ही केंद्र में घूमने लगती है। इस अवस्था में मशीन पर कार्य किया जाता है।

एंटी फ्रिक्शन बियरिंग (Anti Friction Bearing)

                            इस प्रकार के बियरिंग में सॉफ्ट और बियरिंग प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में नहीं आते हैं। बल्कि शाफ्ट वह बियरिंग के बीच में रोलर्स (Rollers) या बॉल्स (Balls) फिट होते हैं। जिससे शाफ्ट के ऊपर आसानी से घूमते हैं। जिसमें घर्षण बहुत कम होता है। इनका प्रयोग अधिक या कम लोड पर अधिक या कम स्पीड पर किया जाता है। आमतौर पर मशीन में ज्यादा गति प्राप्त करने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। बिरिंग का निर्माण करने में एलॉय स्टील (Alloy Steel),  क्रोमियम स्टील (Chromium Steel)  मेटल का प्रयोग किया जाता है।

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बियरिंग के भाग (Parts of Bearing)

आउटर रिंग (Outer Ring) बियरिंग की बाहरी रिंग
इनर रिंग (Inner Ring) बियरिंग की अंदरूनी रिंग
रोलर एलिमेंट (Rolling Element) दोनों रिंग के बीच में बियरिंग को स्मूथली चलाने के लिए गोली (Boll), रोलर (Roller) या नीडल (Needle) फिट होते हैं।
केज (Cage) दोनों रिंग के बीच में गोली (Boll), नीडल (Niddle) और रोलर Roller) को पकड़कर रखने वाली जाली।

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एंटी फ्रिक्शन बियरिंग के प्रकार (Types of Anti Friction Bearing)

बॉल बियरिंग (Ball Bearing)


                            इस प्रकार के बियरिंग में इनर रिंग के ऊपर तथा आउट रिंग के अंदर के भाग में पूरी गोलाई में ग्रुव होता है तथा इन ग्रुव के मध्य कुछ बाॅल (Ball) केज (Cage) की सहायता से पूरी गोलाई में इस प्रकार फिट होती कि दोनों रिंग एक दूसरे के सापेक्ष अच्छी प्रकार घूम सकें इसमें बाॅल का दोनों रिंगों के साथ पॉइंट कांटेक्ट (Point Contact) होता है। इसमें घर्षन की आवाज को कम करने के लिए बियरिंग में ग्रीस अथवा ऑयल (Grease and Oil)  यूज करते हैं। कम भार के लिए सिंगल राॅ तथा अधिक भार के लिए डबल राॅ के बियरिंग काम में लिए जाते हैं।

रोलर बियरिंग (Roller Bearing)

                            यह बियरिंग दिखने में बॉल बियरिंग की तरह ही होते हैं।अंतर इतना है कि उसमें रोलिंग एलिमेंट बॉल की जगह रोलर प्रयोग किया जाता है। जिसका प्रयोग भारी कामों में के लिए किया जाता है। रोलर की आकृति के अनुसार बियरिंग के प्रकार :-

( A ) सिलैंडरिकल रोलर बेयरिंग (Cylindrical Roller Bearing)

                              इस प्रकार के बियरिंग के रोलर प्लेन सिलैंडरिकल होते हैं। इनमें भार सहन की करने की शक्ति अधिक होती है।

( B ) बैरल रोलर बेयरिंग (Rarrel Roller Bearing)

                              इस बियरिंग के रोलर ढोलक की आकृति के होते हैं। इनका व्यास बीच में से अधिक और किनारों से कम होता है। इस प्रकार के बियरिंग के प्रयोग से शाफ्ट को सीध में रखने में कोई कठिनाई नहीं आती है। इसे सेल्फ एलाइनमेंट रोलर बियरिंग भी कहते हैं।

( C ) नीडल रोलर बियरिंग (Needle Roller Bearing)

                               इस बियरिंग के रोलर बहुत कम डायामीटर अर्थात सुई (Needle) के समान होते हैं। इस बियरिंग के नीडल का साइज 2 से 10 मिलीमीटर तक होता है। देखने में सिलैंडरिकल रोलर बियरिंग के समान होते हैं। ऐसे बियरिंग में प्ले नहीं होती, इसलिए इनका प्रयोग ज्यादा एक्यूरेसी से चलने वाली सॉफ्ट में किया जाता है।

( D ) टेपर रोलर बियरिंग (Raper Roller Bearing)

                           इस प्रकार के बियरिंग में टेपर रोलर फिट किए जाते हैं। इससे एंड थ्रस्ट बियरिंग (And Thrust Bearing) भी कहते हैं। यह शाफ्ट के संपूर्ण दबाव के साथ समांतर दबाव भी सहन करते हैं इसीलिए इनका प्रयोग कहां किया जाता है जहां शाफ्ट पर इस प्रकार का दबाव है ज्यादातर इस प्रकार के बियरिंग का अधिकतर प्रयोग ऑटोमोबाइल्स क्षेत्र में किया जाता है।

थ्रस्ट बियरिंग (Thrust Bearing)

                          जहां शाफ्ट पर लोड अक्ष (Centre) के समांतर पड़ता है। वहां पर थ्रस्ट बियरिंग का प्रयोग किया जाता है। इसमें इनर रिंग और आउटर रिंग ना होकर शाफ्ट पर वाशर तथा हाउसिंग वाशर का प्रयोग किया जाता है। इन दोनों वाशरों के फेस पर ग्रुव अथवा रेस वे बने होते हैं  वाशरों के मध्य बॉल एक गनमेटल के केस के अंदर रहती है। यह दो प्रकार के होते हैं :-

( A ) सिंगल डायरेक्शन थ्रस्ट बियरिंग (Single Direction Thrust Bearing)

जहां पर शाफ्ट पर एक साइड से लोड पड़ता है वहां पर सिंगल डायरेक्शन थ्रस्ट बियरिंग का प्रयोग किया जाता है। इसमें एक ओर शाफ्ट वाशर तथा दूसरी ओर हाउसिंग वाशर के डायमीटर से कुछ माइक्रोन कम होता है। इस कारण यह हाउसिंग वाशर से फ्री घूमता है। हाउसिंग वाशर हाउसिंग में टाइट फिट रहता है। तथा वह शाफ्ट के साथ नहीं घूमता। इस बियरिंग की फिटिंग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है।

( B ) डबल डायरेक्शन थ्रस्ट बियरिंग (Double Direction Thrust Bearing)

                                यह बियरिंग शाफ्ट पर दोनों और से पड़ने वाले भाग को सहन करता है। इसमें  मध्य में वासर तथा उसके दोनों और हाउसिंग वाशर होते हैं। शाफ्ट वाटर के ऊपर व नीचे बाॅल की कतारें होती है। जो दोनों ओर से पड़ने वाले भार को सहन करती है।

स्फेरिकल बियरिंग (Spherical Bearing)

                                 स्फेरिकल बेरिंग का उपयोग ऐसे स्थानों पर किया जाता है‌। जहां पर शाफ्ट में एंगुलर डायरेक्शन (Angular Direction) होने की संभावना रहती है। इसमें रोलर अथवा बाॅल केज के अंदर इस प्रकार से फिट हुए रहते हैं, जिसमें वे इनर रिंग सहित आउटर रिंग में एंगुलेर डायरेक्शन होने पर भी पूर्ण दक्षता से चलायमान रहते हैं।

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बियरिंग फिट करते समय ध्यान रखने योग्य बातें :-

1* बियरिंग, हाउसिंग और शाफ्ट के साइज में अलाउंस होना चाहिए। यह बियरिंग में लिखे निर्देशों के अनुसार रखना चाहिए।
2* भार व स्पीड को ध्यान में रखकर ही बैरिंग का चुनाव करना चाहिए।
3* बियरिंग फिट करने के बाद ऑयल सील अवश्य लगानी चाहिए।
4* बेरिंग को धूल व डस्ट से बचाकर रखना चाहिए।
5* नए बेरिंग को केरोसिन / मिट्टी के तेल से नहीं धोना चाहिए।
6* बियरिंग को फिट करते समय नर्म मेटल का हैमर प्रयोग करना चाहिए।

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